Sunday, December 15, 2019

सब चंगा सी।

सब चंगा सी,
सब चंगा सी।

बुनियादी सहूलियतों  की कमी,
गरीबों की आंखों में नमी,
बच्चा उनका देखो
खड़ा नंगा सी,
पर सब चंगा सी।

बच्ची हुई है, मिठाई बंट रही,
कुछ गाओ में,
कोख में ही काट रही,
हाथ खून से रंगा सी,
पर सब चंगा सी।

देश हो रहा एक जुट?
कहीं पड़े रही फूट,
कहीं जल रही हैं सड़कें
कहीं हो रही लूट,
हो रहा यहां पर दंगा जी,
पर देश चंगा सी।

किसी को मिलरही है नागरिकता,
कहीं कोई कहे है देश है बिकता,
इस खौफ के आलम में
कोई रोटियां सेकता,
कोई लेता सरकार से पंगा जी,
पर सब चंगा सी।

विद्यालयों में पढ़ते बच्चे,
बनाते अपना भविष्य,
फिर अनपर भांजी लाठी,
पिट रहे शिक्षक और शिष्य,
कानून सुली पर टंगा सी,
पर सब चंगा सी।

कहीं जल रहा है घर,
किसी की आबरू पर है डाका,
कपड़े फटे हुए हैं उसके,
सड़क पर दौड़ाया उसे नंगा जी,
पर सब चंगा सी!

वो बैठे हुए हैं होकर मौन,
जबान पर लगा हुआ है उनके ताला,
मरते, मिटते, कफन में दफन लोग,
उनको नही पता क्या कौन,
पर उनका तो 56" का डंका है जी
के सब चंगा सी।

सब चंगा सी।
सब चंगा सी।