माना के किसान अन्नदाता नहीं लेकिन वो अन्न उगता है तभी लोगों का पेट भरता है।
आप जितनी मेहनत करते है वह इस से ज़्यादा ही मेहनत करता है।
आपकी मेहनत का आपको अगर सही मेंहेंतना नहीं मिलता तो आपको बुरा लगता है के नहीं।
सोचो वो तो अपनी मेहनत से उगाई हुई फसल का सही दाम नहीं मिलने पर भी संतोष कर लेता है।
आज जब वो अपने मेहनत का सही दाम लेने के लिए सड़कों पर बैठा है तो आप लोगों को बुरा लग रहा है।
सोचो कोई आपसे काम करवाए और महीने के बाद बोले के आपको हम १०००० रुपए नहीं देंगे आपको बस ४००० रूपए ही दिए जाएंगे तो क्या आप दोबारा वह काम करेंगे।
नहीं ना
आप कहीं और जाकर कोई और काम ढूनहोगे, १० गालियां और निकाल कर आयोगे।
अगर किसान भी किसानी छोड़ दें वो आप क्या खाओगे।
अगर कोई फसल ही नहीं उगाएगा तो आप खाओगे क्या।
पैसा किसलिए कमाते हो।
जोंदगी की पहली ज़रूरतों में से एक खाना भी है।
इंटरनेट और भाषणों से पेट नहीं भरता, पेट में जब अन्न जाता है तभी आपकी भूख मिटती है।
चलो आज आप तो किसी तरह अपनी ज़िन्दगी गुज़ार लोगों, आगे आपके बच्चो का क्या।
सोचो किसान कितने सालों से पिस रहा है, हर बार कोई नई पार्टी आकर इन्हे बोलता है कि हम आपको एमएसपी देंगे। लेकिन सत्ता में आने के बाद उनसे तो सभी ने धोखा दिए है।
मुझे नहीं पता ३ कानून काले है या गोरे।
मुझे तो बस इतना पता है कि किसानों के मेहनत का फल तो उन्हे मिलना ही चाहिए।
पिछले कई सालों से किसान आत्म हत्या कर रहा है लेकिन किसी को कोई सुध ही नहीं है।
वहीं कोई बड़ा आदमी मर जाए तो टेहेलका मच जाता है न्यूज चैनल पर।
मंत्री जी ने भी तो सं २०११ में बोला था के एमएसपी का कानून बनना चाहिए, पर अब ला ही नहीं रहे, बस लिखित आश्वासन की बात कर रहे हैं।
आप अगर लिखित आश्वासन दे सकते हैं तो आपको किस बात से गुरेज है इसी को कानून में तब्दील करने में।
मेरी मेरे प्रदान मंत्री जी से यही प्रार्थना है के वो किसानों के बारे में जल्दी ही कुछ सोचे।
और अच्छा सोचें।