Wednesday, February 12, 2020

जी आपको।

वोह आए हमारे दर पे,
कुछ मुस्कुराए, कुछ बतलाए,
पूछे किसे वोट डाल रहे हो,
हमने भी बोल दिया,
"जी आपको।"
और वो खुशी से गले से लगा कर
हमसे विदा हो लिए।

कुछ दिन बाद वो फिर से आए,
गले में थी मला, माथे पे था टीका,
भीड़ के बीच वो फिर से दिखाई दिए।
इस बार तो लोगो का भी था हुजूम
नारे भी लगाए जा रहे थे।
फिर एक बार वो माइक से बोले
" वोट डालने ज़रूर जाएगा, हमें ही जिताएगा।"

हम भी हुजूम को देख रहे थे,
उन्होंने हमको देखा, बुलाया और पूछा,
"जी किसको वोट देंगे।"
हमारा तो आज भी वही जवाब था,
"जी आपको"
(क्यों बताऊं किसी के बाप को!)
"जी आपको"
उन्होंने हाथ मिलाया, गले से लगाया, 
अपनी मला उतार हमारे गले में पहनाया।
वो खुश थे के सत्ता के गलियरों में उनको पूर्ण बहुमत मिलने जा रहा है।
और उनका फूल अब चमन में खिलने जा रहा है।

अगले ही दिन एक और महानुभाव आए, 
राग वो अपना खुदका गाए,
पूछ रहे थे के क्या रुझान होगा इस बार का,
पता तो चले अंतर जीत हार का।
चाय की चुस्की के साथ मठ्ठी भी खाए जा रही थी,
और अपनी पार्टी की राए भी गिनाई जा थी थी।

वो बोले के हमें ही दीजियेगा वोट तो ही उन्नति आएगी।
और फिर वो चल दिए।

आखिर में जब चुनाव का दिन नजदीक आया,
हमारे पास एक और मुद्दा लेकर कोई आया।
कहीं तो देखा है इन्हे हम सोच ही रहे थे,
वो आए और गले से ही चिपट लिए।
हमने पूछा "क्या हुआ, इतना खुश क्यों हो."
वो बोले, "आप तो आप को ही जीता रहे हो।"
हमने तो किसी को नहीं बताया के किसे हम मत दे रहे है,
कहे को ये इतने सख्त हो रहे हैं।

तभी याद आया
हम तो कब से ढिंढोरा ही पिट रहे हैं।
बार बार एक ही बात तो कहें हैं।
"जी आपको, जी आपको।"

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