रे तूने दस्तख़त ही क्यूं किया।
मैं सुन रहा हूं आज कल ये दास्तां
के देश को आजाद ही तूने किया।
नतमस्तक हूं मैं तेरे चरणों में
जो तूने एक सवाल का जवाब जो दे दिया।
पूछता है युवा आज भी तुझसे ही।
बटवारे के पन्नों पर दस्तखत ही क्यूं किया?
माना, माना k तु ही कारणधार है इस आजादी का
मगर दस्तखत से नफरतों का बीज भी तो बो दिया।
देख कैसे देश दोनो लड्ड रहे,
देख कैसे देश दोनो लड्ड रहे,
खून के प्यासे बना कर रख दिया।
एक बेट्टोंन आया और लकीरें खींच दी,
लहू है दोनो ओर, सिर कलम किए जा रहे
किसी की इज़्ज़त, किसी का मज़हब लुट रहा
सरहद पर खौफ की ज़िंदगी जीने पर मजबूर कर दिया।
है कैसा ये बटवारा जो दिलों को दूर करे,
एक लकीर बन वतन को तोड दे।
माना k तुझे नामालूम था के बाद में क्या होगा।
माना k तुझे नामालूम था के बाद में क्या होगा।
मगर उस दिन तु कहां था जब
जलिया वाला बग जल रहा
भगत को फांसी का फरमान जारी किया
लाला जी भी लाठी सिर पर खा k सिर ऊंचा कर गए
और देख कर ये सब निवासी डरर रहे।
ये सुनकर ही सीना खौलता है
के बच्चो कि दी गई कुर्बानियां
क्या तेरा कलेजा नहीं फटा।
जबतक दस्तखत की बात ना थी,
हिन्दू मुसलमान साथ थे मेरे वतन में।
सोच तु ना करता गर दस्तखत उस दिन वहां
देश होता एक मेरा हिन्दुस्तान।
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